भाई-बहनों में झगड़े उनके विकास में मददगार; उनमें होड़ जीवन की सच्चाई, हर घंटे आठ बार तक झगड़ सकते हैं

कोरोना काल में स्कूल बंद हैं, बाजारों में आवाजाही सीमित है। ऐसे में बच्चे घरों में कैद हो गए हैं। इसका दूसरा पहलू यह है कि वे बात-बात पर लड़ते हैं। माता-पिता सबसे परेशानी सबसे साझा करते हैं, ‘बच्चों ने नाक में दम कर रखा है।’ लेकिन मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों की इस लड़ाई से आप बच नहीं सकते। यह घर-घर की कहानी है।
आप बस इस पर काबू पाने की उम्मीद कर सकते हैं। भाई-बहनों की लड़ाई (सिबलिंग राइवलरी) के बारे में अध्ययन करने वाले कॉलेज ऑफ न्यूजर्सी में साइकोलॉजी के प्रो. जिनाइन विवोना कहते हैं, भाई-भाई या भाई-बहनों में स्पर्धा जीवन का सच है। इसलिए माता-पिता को इससे सर्वश्रेष्ठ तरीके से निपटने की कोशिश करनी चाहिए। शोध बताते हैं कि भाई-भाई या भाई-बहन एक घंटे में अधिकतम आठ बार तक लड़ सकते हैं। अन्य शोधों से पता चला है कि दो बहनें एक-दूसरे के निकट रह सकती हैं। लेकिन इनमें एक भाई शामिल हो जाए तो अधिक झगड़ों की संभावना है।
आपसी लड़ाई की जड़ें सैकड़ों साल पुरानी
पेन्सिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट के शोध प्रो. मार्क एथान फिनबर्ग कहते हैं, ‘यह टकराव बड़े होने पर घट जाता है। बचपन का शुरुआती और मध्य काल बच्चों के लिए मुश्किल समय होता है। वैसे बच्चों की आपसी लड़ाई की जड़ें सैकड़ों साल पुरानी हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से यह विकास के लिए होती है। इससे बच्चे को यह जानने में मदद मिलती है कि उनमें कौन सी बात अनूठी और विशेष है।
बच्चे परिजन के लिए सबसे खास दिखना चाहते हैं, इसलिए वे भाई या बहन के मुकाबले श्रेष्ठ देखभाल के लिए जोर डालते हैं। हालांकि वे अपनी योग्यता और व्यक्तित्व को अपने भाई या बहन की योग्यता और इच्छाओं के अनुसार भी ढाल सकते हैं। जैसे बड़ा भाई अच्छा फुटबॉलर है, तो छोटा साथ फुटबॉल खेलने से बच सकता है। उसे डर होता है कि वह अपने भाई जितना अच्छा नहीं हो सकता या बेहतर हो सकता है।
हालांकि वह दोनों ही स्थिति में जोखिम नहीं लेना चाहता। विवोना कहते हैं, ‘दोनों ही फुटबॉल टीम में भी हो सकते हैं। ऐसे में बड़ा भाई गंभीर परिश्रमी होगा, लेकिन छोटा खुद को मसखरे के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश करेगा।
यह करें : बच्चों को खुद ही समाधान खोजने दें, बात बढ़े तो हस्तक्षेप करें
पता लगाएं कि लड़ाई क्यों शुरू हुई
चाइल्ड एंड फैमिली स्टडीज की एसोसिएट प्रो. सैली हंटर कहती हैं, ‘पता लगाएं लड़ाई के पहले क्या हुआ था। वीडियो गेम खेलते समय लड़ते हैं, तो जब वे खेलने बैठें तो वे शब्द सुनें, जो लड़ाई का कारण बन रहे हों। बात बढ़े, उससे पहले दखल दें।’
प्रशंसा सबके सामने, डांटें अकेले में
हंटर कहती हैं, ‘बच्चे आपसी अपनापन रखते हैं तो जोर-शोर से प्रशंसा करें। बुरा-भला कह रहे हैं तो अकेले में डांटें। क्योंकि इससे दूसरे बच्चे को पहले पर अधिकार जमाने का गोला-बारूद मिल सकता है।’
उन्हें बोलने दें, झगड़ा सुलझाना सिखाएं
एक बार झगड़ा सुलझ जाए, तो उनसे बिना आरोप-प्रत्यारोप समस्या पर बात करवाने की कोशिश करें। फिनबर्ग कहते हैं, ‘हर बच्चे को बिना टोके बोलने दें। उन्हें खुद ही समाधान पर आने दें। समय के साथ वे खुद समाधान पर पहुंचना सीख जाएंगे।’
ऐसे पल तलाशें, जब सब साथ हों
बच्चों के मिजाज और व्यक्तित्व एक जैसे हो सकते हैं, नहीं भी। दोनों डांस पसंद कर सकते हैं या एक को चेस अच्छा लग सकता है। ऐसे साझा पल या खेल खोजें, जब सब आरामदायक, जुड़ाव महसूस करें।